एक तिहाई आरक्षण का ब्रह्मास्त्र, आधी आबादी किसके साथ ?

आधी आबादी को एक तिहाई हक देकर बराबरी की अधूरी कोशिश 27 साल के लंबे इंतजार के बाद अब जाकर पूरी होती दिख रही है।

  •  
  • Publish Date - September 20, 2023 / 01:50 PM IST,
    Updated On - September 20, 2023 / 01:50 PM IST

आधी आबादी को एक तिहाई हक देकर बराबरी की अधूरी कोशिश 27 साल के लंबे इंतजार के बाद अब जाकर पूरी होती दिख रही है। मंगलवार को नए संसद भवन का श्रीगणेश करते हुए लोकसभा में सबसे पहले नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया। हालांकि इस विशेष सत्र में बिल पास हो जाने के बाद भी महिलाओं का इंतजार अभी खत्म नहीं होगा क्योंकि इस बिल को लेकर कई सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि 33 फीसदी आरक्षण लागू कब से होगा? एक्सपर्ट्स के अनुसार इसे लोकसभा चुनाव 2024 में लागू नहीं किया जा सकेगा। पहले परिसीमन होगा तब जाकर सीटें आरक्षित होंगी और फिर महिलाओं को उनका हक मिल पाएगा। लेकिन पेंच ये है कि अब तक जनगणना ही नहीं हुई है तो परिसीमन किस आधार पर होगा? यानी महिलाओं के लिए अभी दिल्ली दूर है लेकिन श्रेय लेने की होड़ सदन के अंदर और बाहर दोनों तरफ बराबर है क्योंकि यही दांव इस बार ब्रह्मास्त्र साबित होने वाला है!

चुनाव में महिलाएं बनेंगी खेवनहार

केंद्र की भाजपा सरकार के इस कदम से ये साफ है कि अगले चुनाव में उनका पूरा जोर महिला वोटर्स पर है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले ही लाड़ली बहना और लाड़ली आवास योजना के जरिए महिला मतदाताओं के बीच पैठ बना रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस ने महिलाओं को साधने के लिए नारी सम्मान योजना शुरू करने की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने बीते साल महतारी हुंकार रैली के जरिए महिलाओं के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया तो दूसरी ओर कांग्रेस ने कुमारी सैलजा को प्रदेश प्रभारी बनाकर महिलावादी छवि को मजबूत करने की कोशिश की है। गौर करने वाली बात ये भी है कि एमपी-छत्तीसगढ़ में महिला और पुरुष वोटरों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है। एमपी के 41 जिलों में नए मतदाताओं में महिलाओं का आंकड़ा ज्यादा है। यहां महिला वोटरों का आंकड़ा 7 लाख से ज्यादा बढ़ा है। छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, बस्तर, कोंटा, बीजापुर, कवर्धा, मरवाही समेत 22 विधानसभा क्षेत्रों में महिला वोटरों की संख्या ज्यादा है। महिला बहुल मतदाताओं वाले इन 22 में से 19 सीटों पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। इन आंकड़ों से साफ है कि आधी आबादी के साथ के बिना चुनावी वैतरणी पार करना मुश्किल है। जब तक महिलाएं अपनी दहलीज से बाहर नहीं निकलेंगी, तब तक सियासी दलों का सत्ता तक सफर कठिन है।

आंकड़ों से समझें समीकरण

लोकसभा और राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का ये बिल महिला सशक्तिकरण की दिशा में सबसे ऐतिहासिक कदम है। इसके कानून बन जाने के बाद सदन की हर तीसरी सदस्य महिला होगी। फिलहाल लोकसभा में 78 सीटों यानी 15 फीसदी और राज्यसभा में 32 सीटों यानी 13 फीसदी महिलाओं की भागीदारी है। महिला आरक्षण पर मुहर लगने के बाद लोकसभा की 181 सीटें रिजर्व हो जाएंगी। हालांकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, पुडुचेरी और केंद्र शासित अंडमान निकोबार, चंडीगढ़, दादरा नागर हवेली, दमन-दीव, लक्षद्वीप और लद्दाख में लोकसभा की 1 या 2 सीटें हैं, फिलहाल यहां क्या होगा, ये तय नहीं है।

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की बात करें तो एमपी की 29 लोकसभा सीटों में से 4, राज्यसभा की 11 में से 2 और विधानसभा की 230 सीटों में से सिर्फ 16 पर महिला जनप्रतिनिधि हैं। यहां महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत चिंताजनक है। छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से 3 पर महिला सांसदों का कब्जा है। इन 3 सीटों में से 2 भाजपा और 1 कांग्रेस के पास है। राज्यसभा की 5 सीटों में से 2 पर कांग्रेस और 1 पर भाजपा की महिला सांसद काबिज हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीट में 15 सीटों पर महिलाएं हैं, जो देश में सबसे ज्यादा करीब 16 फीसदी है। किसी भी जवाबदेह लोकतंत्र के लिए महिलाओं की बराबर राजनीतिक भागीदारी महत्वपूर्ण है। इसके लिए संविधान में 73वें संशोधन के जरिए 1992 में महिलाओं को पंचायतों में एक तिहाई आरक्षण दिया गया था। बाद में कई राज्यों ने इस सीमा को बढ़ाकर 50 फीसदी तक कर दिया। इससे ग्रामीण क्षेत्र की घूंघट में रहने वाली महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालत में बड़ा बदलाव हुआ है। मध्य प्रदेश की पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए पहले से ही 50 फीसदी आरक्षण लागू है।

हालांकि इसका एक और पक्ष गाहे-बगाहे सरपंच पति के रूप में सामने आता रहा है। कहीं आगे विधायक पति और सांसद पति की परंपरा महिलाओं की बराबरी के प्रयास को धूमिल ना कर दें। बहरहाल, सियासत को थोड़ा साइड कर दें तो महिलाओं को बराबरी के हक की ये कोशिश वाकई सराहनीय है। वैसे भी भारत की संस्कृति में महिलाओं का दर्जा श्रेष्ठ रहा है। भारतीय दर्शन ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ के सिद्धान्त वाला रहा है। वैदिक काल में समाज मातृ सत्तात्मक और महिलाओं की श्रेष्ठ और उच्च भूमिका थी, जो कालांतर में विकृत होती गई। अब एक बार फिर भारत स्वर्णीम युग की ओर कदम बढ़ा चुका है और आप इसके साक्षी बन रहे हैं। सबसे अंतिम और सबसे अहम सवाल आपके लिए है कि आखिर सियासी दंगल में आधी आबादी किस ओर है?