#Batangad: EVM को सवालों के कटघरे में खड़ा करने वालों को सुप्रीम कोर्ट की ओर से करारा झटका लगा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने EVM के जरिये डाले गए वोट का VVPAT की पर्चियों से शत-प्रतिशत मिलान करने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। ये फैसला देकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि देश में बैलेट पेपर से वोटिंग का दौर वापस नहीं आएगा। दूसरे चरण के मतदान के दौरान सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सरकार और चुनाव आयोग के साथ ही उन लोगों के लिए भी राहत भरी खबर है जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को संचालित करने वाली चुनावी प्रक्रिया में अड़ंगा लगाए जाने की की कोशिश से सशंकित थे।
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने भले EVM में दर्ज वोटों का VVPAT की पर्चियों से शत-प्रतिशत मिलान करने से इंकार कर दिया है, लेकिन कोर्ट ने आशंका के समाधान के सभी रास्तों को बंद नहीं किया है। कोर्ट ने चुनाव के बाद सिंबल लोडिंग यूनिट्स और ईवीएम को 45 दिनों तक सुरक्षित रखने के निर्देश दिए हैं। दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले किसी कैंडिडेट को शक है तो वो रिजल्ट के ऐलान के 7 दिन के भीतर शिकायत कर सकता है। शिकायत के बाद EVM बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर्स EVM के माइक्रो कंट्रोलर प्रोग्राम की जांच करेंगे। किसी भी लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा क्षेत्रवार की टोटल EVM में से 5 फीसदी मशीनों की जांच हो सकेगी। इन 5 फीसदी EVM को शिकायत करने वाला प्रत्याशी या उसका प्रतिनिधि चुनेगा। इस जांच का खर्च कैंडिडेट को ही उठाना होगा। जांच के बाद अगर ये साबित होता है कि EVM से छेड़छाड़ की गई है तो शिकायत करने वाले कैंडिडेट को जांच का पूरा खर्च लौटा दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन सियासी दलों के लिए किसी तमाचे से कम नहीं है, जो जनादेश का सम्मान करने की बजाए अपनी हार का ठीकरा EVM पर फोड़कर पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही संदेह के घेरे में लाने का पाप करते थे। यही वजह है कि चुनाव आयोग ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अब EVM पर किसी को शक नहीं रहना चाहिए। चुनाव आयोग ने कहा कि अब पुराने सवाल खत्म हो जाने चाहिए क्योंकि सवालों से वोटर के मन में शक होता है। तो क्या ये मान लिया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी दलों के नेताओं का ईवीएम को लेकर किया जाने वाला प्रलाप थम जाएगा। तो क्या अब राहुल गांधी ये मान जाएंगे कि ‘राजा’ की जान EVM से बाहर आ चुकी है।
लेकिन फिलहाल विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया को देखकर ऐसा लगता तो नहीं है। क्योंकि विपक्षी दलों के राजनेता किंतु-परंतु के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब भी सवाल उठा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तो कह भी दिया है कि, ‘ EVM और VVPAT को लेकर लड़ाई बहुत लंबी है जो रुकेगी नहीं। इंडिया गठबंधन को जिताओ और ईवीएम को हटाओ।’ हालांकि कांग्रेस ने फैसले पर अपेक्षाकृत संतुलित प्रतिक्रिया दी है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा है कि, ‘VVPAT पर जिन याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय ने खारिज किया, उनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक पक्ष नहीं थी। चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए VVPAT के अधिक से अधिक उपयोग पर हमारा राजनीतिक अभियान जारी रहेगा।”
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विपक्षी नेता चाहे जिस नजरिए से स्वीकार करें लेकिन इतना तो तय है कि इस फैसले ने पूरी दुनिया में सम्मान और मिसाल के तौर पर देखी जाने वाली भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाने वालों को आइना दिखाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा भी है कि,’ ‘संतुलित परिप्रेक्ष्य महत्वपूर्ण है, आंख मूंदकर किसी भी व्यवस्था पर संदेह करना उस व्यवस्था के प्रति शक पैदा कर सकता है. सार्थक आलोचना करने की जरूरत है, फिर चाहे वो न्यायपालिका हो या फिर विधायिका।’ सुप्रीम कोर्ट की ये समझाइश वाकई तर्कपूर्ण है क्योंकि कोई भी व्यवस्था या तकनीक शत-प्रतिशत फुलप्रूफ नहीं हो सकती। जरूरत उसकी निगरानी और शंका के समाधान का विकल्प खुला रखने की है। और सुप्रीम कोर्ट ने परिणाम जारी होने के बाद कोई शंका होने पर 7 दिनों के अंदर 5 फीसदी EVM की जांच की अनुमति देकर समाधान का विकल्प खुला भी रखा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विपक्षी दल अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद ‘जनता का आदेश’ भी मानने की समझदारी दिखाएंगे।
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