बतंगड़: जिसकी जैसी नजर उसको वैसा आकाश दिखा

बतंगड़: जिसकी जैसी नजर उसको वैसा आकाश दिखा

  •  
  • Publish Date - February 27, 2025 / 02:28 PM IST,
    Updated On - February 27, 2025 / 04:27 PM IST
Batangad: Image Source: IBC24

Batangad: Image Source: IBC24

HIGHLIGHTS
  • 45 दिन तक चले दुनिया के सबसे बड़े समागम के गवाह बने 66 करोड़ लोग
  • प्रयागराज में हुए महाकुंभ ने इन सारी प्रचलित धारणाओं को ध्वस्त कर दिया

-सौरभ तिवारी

prayagraj mahakumbh 2025: हर बड़े आयोजन और घटना के बाद उसके फलितार्थ को लेकर विमर्श का दौर चलता है। प्रयागराज में हुए महाकुंभ को लेकर भी इसके प्रभाव और परिणाम को लेकर अपने-अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर विवेचना का दौर जारी है।

कुंभ को अब तक अशिक्षित, निम्न और मध्यम आयवर्गीय, धर्मभीरु, पुरातनपंथी जैसी उपमाओं से विभूषित लोगों का धार्मिक अनुष्ठान माना जाता था। लेकिन प्रयागराज में हुए महाकुंभ ने इन सारी प्रचलित धारणाओं को ध्वस्त कर दिया है। महाकुंभ ने सामाजिक विभाजन का पैमाना मानी जाने वाली सारी प्रचलित मान्यताओं और मापदंडों को मटियामेट कर दिया है।

45 दिन तक चले दुनिया के सबसे बड़े समागम के गवाह बने 66 करोड़ लोगों का मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक आधार पर विश्लेषण करें तो पाते हैं कि महाकुंभ ने विभाजन के सारे विभेद मिटा दिए। इन 66 करोड़ लोगों में सिर पर गठरी लादे, पैरों पर फटी चप्पल पहने कई-कई किलोमीटर पैदल चलते आम लोगों का हुजूम था तो दूसरी तरफ इन्हीं 66 करोड़ लोगों में वे लोग भी शामिल थे जो 700 चार्टड प्लेन और 2800 नियमित फ्लाइट्स से प्रयागराज पहुंचे। चार्टड और नियमित फ्लाइट्स से आने वाले ये लोग कौन थे? ये वे लोग थे जो इलीट के रूप में कटेगराइज किए जाते हैं। प्लेन से पहुंचे ये हजारों लोग उस प्रचलित धारणा का जवाब है जो कुंभ या इस जैसे दूसरे धार्मिक आयोजनों को पिछड़े और गरीब लोगों के मानसिक फितूर के रूप में परिभाषित करता है।

Read More: Mahakumbh 2025: महाकुंभ में काम करने वाले सफाई कर्मियों को बड़ी सौगात, मिलेगा इतने हजार रुपए का बोनस, खुद सीएम योगी ने किया ऐलान 

धार्मिक महत्व के आयोजनों में जुटी भीड़ को अतार्किक, धर्मभीरू और अवैज्ञानिक सोच वाले लोगों का जमावड़ा बताने वालों को इस महाकुंभ ने करारा जवाब दिया है। हाथों में कांवड़ की जगह कलम-किताब उठाई होती तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता, जैसे उलाहनों के साथ धार्मिक लोगों पर ताना कसने वालों को महाकुंभ ने सबक सिखाया। क्योंकि कुंभ में जुटे इन 66 करोड़ लोगों में एक ओर जहां कथित अशिक्षित और पाखंडी जनता थी तो दूसरी ओर दुनिया भर की तमाम बड़ी कंपनियों के सीईओ, मैनेजर, आईटी प्रोफेशनल और वैज्ञानिक भी थे। गांव का अनपढ़ रामनाथ और इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ. सोमनाथ दोनों ने गंगा के एक ही घाट में पवित्र डुबकी लगाई। लाखों हाईटेक प्रोफेशनल्स की महाकुंभ में सहभागिता इस तथ्य को सिद्धता प्रदान करती है कि आस्था और वैज्ञानिकता एक दूसरे के प्रतिगामी नहीं बल्कि पूरक हैं।

Read More: Vishnu Ka Sushasan: साय सरकार के योजना के जोर.. पशुपालक मन होवत हे सजोर, डेयरी विकास कार्यक्रम से बढ़ी आय, बेरोजगारों को मिला रोजगार 

महाकुंभ ने उस प्रयोजित धारणा को भी आईना दिखाया जिसके तहत धर्म को विभाजन की वजह माना जाता है। महाकुंभ ने सिद्ध कर दिया कि धर्म विभाजन का नहीं बल्कि संयोजन का कारक है। महाकुंभ में धर्म ही वो माध्यम बना जिसने जातिगत आधार पर बंटे समाज को एकीकृत करने की संभावना को जन्म दिया। मां गंगा ने अपने आंचल में समस्त प्राणियों को आश्रय देकर मानवीय विभाजन के सारे आधार मिटा दिए। कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से महाकुंभ के खिलाफ किए गए प्रलाप में दरअसल उनका डर छिपा था। ये डर उपजा था महाकुंभ में देश की आधी आबादी की सहभागिता को देखकर। बृहत्तर हिंदू एकता को जाति जनगणना और उत्तर-दक्षिण के आधार पर बांटने वालों को एकसूत्र में पिरोने का माध्यम बनने वाला महाकुंभ भला विभाजनकारी राजनीति करने वालों को कैसे सुहा सकता है?

बहरहाल करोड़ों-करोड़ों आस्थावान लोगों के स्मृति पटल पर अपनी दिव्यता, भव्यता और नव्यता की अमिट अनुभूति अंकित करके महाकुंभ ने विदाई ले ली है। अब किसको महाकुंभ में क्या मिला और क्या दिखा, ये तो देखने वाली की मानसिकता पर निर्भर करता है। अंग्रेजी में एक मशहूर कोटेशन है- Beauty lies in the eyes of the beholder!

लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं

Disclaimer- आलेख में व्यक्त विचारों से IBC24 अथवा SBMMPL का कोई संबंध नहीं है। हर तरह के वाद, विवाद के लिए लेखक व्यक्तिगत तौर से जिम्मेदार हैं।