देश की मौजूदा प्रजनन दर से भविष्य में पैदा होने वाली समस्याओं/ चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश की मौजूदा प्रजनन दर 2.1 फीसदी से ऊपर रखने की सलाह दी है। भागवत के सुझाव को हकीकत का जामा पहनाने के लिए जरूरी है कि ‘बच्चे 2 ही अच्छे’ की मौजूदा जनसंख्या नीति को अपडेट करते हुए ‘हम 2- हमारे 3’ के नारे पर अमल किया जाए। चूंकि ये सुझाव आरएसएस प्रमुख की ओर से दिया गया है लिहाजा स्वाभाविक संघविरोधप्रियता की मानसिकता से ग्रसित समूह विशेष द्वारा बिना भागवत के बयान की गहराई को समझे हो- हल्ला मचाना शुरू कर दिया गया है।
दरअसल हमारी सतही समझ फर्टिलिटी रेट को हमेशा से देश के विकास में बाधक मानने की रही है। स्कूल-कॉलेज में लिखे जाने वाले निबंधों या भाषण प्रतियोगिताओं में प्रजनन दर को नकारात्मक नजरिए से देखा जाता रहा है। प्रजनन दर को नियंत्रित रखना क्यों आवश्यक है, ये समझाने के लिए सबसे लोकप्रिय दलील यही दी जाती रही है कि जनसंख्या का भार बढ़ने से देशवासियों को जरूरी संसाधन यथा मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि उपलब्ध करा पाना अव्यवहारिक होगा। भारत की संसाधनीय सीमाओं को देखते हुए ऊपरी तौर पर ये दलील सही भी लगती है। ये दलील तब और मजबूत नजर आती है जब हम देखते हैं कि भारत के पास पूरी दुनिया की जमीन का महज 2.4 फीसदी हिस्सा ही है लेकिन इस सीमित भू भाग पर दुनिया की 18 फीसदी आबादी रहती है। जाहिर तौर पर इतना सीमित भू भाग और प्रकृति प्रदत संसाधन इतनी बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से नाकाफी है।
लेकिन विडंबना ये है कि हम ज्यादा आबादी के नकारात्मक पहलुओं को स्थापित और सत्यापित तथ्य मानकर ज्यादा आबादी के सकारात्मक पहलुओं की अनदेखी कर देते हैं। किसी देश की आबादी केवल लोगों का समूह भर नहीं होती बल्कि ये उस देश की ‘वर्किंग पावर’ भी होती है। जिस देश के पास जितना सस्ता यंग मैन पावर होगा उस देश की प्रोडक्शन के ‘कैपेसिटी’ उतनी ही ज्यादा और ‘कास्ट’ उतनी ही कम होगी। इस समय भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी यही यंग वर्किंग पापुलेशन है। भारत दुनिया का चौथा सबसे युवा देश है। नाईजीरिया, फिलीपींस और बांग्लादेश के बाद भारत वो देश है जिसकी 65 फीसदी आबादी की उम्र 35 साल से कम है। भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना को भारत की यही यंग वर्किंग पापुलेशन सबसे ज्यादा मजबूती प्रदान करती है।
चीन ने अपनी इसी वर्किंग पापुलेशन को अपनी ताकत बनाकर आर्थिक संपन्नता हासिल की है। लेकिन अब स्थिति चीन के लिए विपरीत होती जा रही है क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण के लिए अपनाए गए कठोर निर्णयों की वजह से उसकी प्रजनन दर पर लगाम तो लग गई लेकिन उसकी इस नीतिगत पहल की वजह से अब उसकी आबादी बड़ी तेजी से बूढ़ी होती जा रही है। कुछ यही स्थिति जापान और जर्मनी की भी हो चुकी है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के अनुसार, साल 2022 में भारत की कुल वर्किंग पापुलेशन 67 फीसदी थी जबकि जापान में ये गिरकर 58 फीसदी और जर्मनी में 63 फीसदी हो चुकी है जो लगातार गिरती ही जा रही है। कुछ यही संकट अब भारत के सामने भी खड़ा होने जा रहा है। 1991 की जनगणना के मुताबिक तब भारत की कुल आबादी में 60 साल से ऊपर वालों की संख्या 7.3 फीसदी थी जो 2011 में बढ़कर 8.4 फीसदी हो गई। एक स्टडी के मुताबिक सन 2050 तक भारत में 60 साल से ऊपर वाले बुजुर्गों की ये संख्या कुल आबादी की 20 फीसदी हो जाएगी। और अगर फर्टिलिटी रेट में ये गिरावट जारी रही तो आकलन के अनुसार 2080 तक भारत में 65 साल से अधिक उम्र के लोग, 18 साल से कम उम्र के लोगों से ज्यादा हो जाएगी।
भारत में अगले तीन-चार दशकों में बुजुर्गों की संख्या में होने वाला ये इजाफा देश के विकास के लिहाज से खतरनाक संकेत है।कुछ इसी संकट का सामना आज चीन, जापान और जर्मनी जैसे देश कर रहे हैं। वर्किंग पापुलेशन की कमी का असर इन देशों की अर्थव्यवस्था पर साफ देखा जा सकता है।
साउथ कोरिया जैसे देश के सामने तो अपना अस्तित्व बचाने का ही संकट पैदा हो गया है। साउथ कोरिया में ये संकट किसी प्राकतिक आपदा और युद्ध की आशंका के चलते नहीं बल्कि प्रजनन दर में आई खतरनाक गिरावट के कारण पैदा हुआ है। साउथ कोरिया की 1950 में प्रजनन दर 6.06 फीसदी थी जो 1984 में घटकर 1.83 होते हुए 2023 में गिरकर महज 0.73 फीसदी पर जा पहुंची। साउथ कोरिया के सामने अपना वजूद बचाने का ये संकट उस देश के सामाजिक सोच में आए बदलाव की वजह से पैदा हुआ है। साउथ कोरिया के युवाओं में पारिवारिक बंधन में नहीं बंधने की मानसिकता ने जन्मदर पर ऐसा ब्रेक लगा दिया है कि विशेषज्ञों के मुताबिक ये देश दुनिया में खत्म होने वाला पहला देश बनने की राह में तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है।
फर्टिलिटी रेट के गिरने से किसी देश के अस्तित्व पर पैदा होने वाले इसी संकट को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इंगित किया है। नागपुर में हुए ‘कठाले कुल सम्मेलन’ में भागवत ने चेताते हुए कहा कि, “आधुनिक जनसंख्या शास्त्र कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से नीचे चला जाता है तो वह समाज पृथ्वी से खत्म हो जाता है। उसे कोई नहीं मारेगा, कोई संकट न होने पर भी वह समाज नष्ट हो जाता है, अनेक भाषाएं और समाज नष्ट हो गये।” फर्टिलिटी दर को 2.1 से ज्यादा बनाए रखने के लिए ही मोहन भागवत ने कम से कम तीन बच्चे पैदा करने का सुझाव दिया। भागवत के इस सुझाव को कई हिंदू धर्माचार्यों ने भी समर्थन दिया है।
लेकिन विडंबना ये है कि मोहन भागवत और भगवाधारी धर्मगुरुओं की ओर से हिंदुओं से दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील मखौल बनकर रह जाती है। इस तंज में दम तो नजर आता ही है कि ये आरएसएस वाले खुद तो शादी-ब्याह के बंधन में ना बंधकर बच्चे पैदा करने के झंझट से परे होते हैं लेकिन दूसरे को चार-चार बच्चे पैदा करने की समझाइश देते हैं। इस महंगाई भरे दौर में जहां एक बच्चा पालना मुश्किल हो रहा है वहां तीन से ज्यादा बच्चे पैदा करने की मूर्खता भरी सलाह कौन दे सकता है?
लेकिन अगर इस तथ्य को दूसरे नजरिए ये देखें तो नई पीढ़ी के नवदंपती वर्ग में लोकप्रिय हो रहे ‘सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट’ के पीछे की वजह आर्थिक ना होकर मानसिक सोच की है। इन मानसिकता के नवयुगलों को ‘डिंक कपल’ से संबोधित किया जाता है। DINK चार शब्दों -‘डबल इनकम नो किड’ से बना है। यानी ऐसे मैरिड कपल्स जिनमें दोनों जॉब करते हैं लेकिन उन्हें पेरेंट्स बनने की कोई जल्दबाजी या जरूरत नहीं होती है। डिंक कपल्स को बच्चों को लेकर किसी तरह की टेंशन नहीं होती है। वो जो भी कमाते हैं अपने ऊपर खर्च करते हैं और अपने शौक पूरा करते हैं। डिंक कपल्स के बढ़ते ट्रेंड से दक्षिण कोरिया, जर्मनी, जापान जैसे कई देशों के साथ अब भारत के सामने भी फर्टिलिटी रेट गिरने से पैदा होने वाले संकट की आहट सुनाई देने लगी है।
बहरहाल अतीत के सबक, वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य के संकट को देखते हुए आवश्यक है कि जनसंख्या जैसे जटिल और बहुआयामी मुद्दे से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करते हुए जनसंख्या नीति को परिमार्जित किया जाए। भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की ओर से दी गई सलाह ने प्रस्तावित जनसंख्या नीति 2.0 के प्रारूप को तय कर दिया है।
-लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।
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