बतंगड़ः पर्दे के पीछे की बजाए अब स्टेज पर प्रत्यक्ष भूमिका निभाएंगी प्रियंका गांधी |

बतंगड़ः पर्दे के पीछे की बजाए अब स्टेज पर प्रत्यक्ष भूमिका निभाएंगी प्रियंका गांधी

#Batangad : नेहरू-गांधी परिवार के सियासी वंशावली की दसवीं सदस्य की भी चुनावी राजनीति में इंट्री हो गई है। मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी

Edited By :   Modified Date:  October 23, 2024 / 07:35 PM IST, Published Date : October 23, 2024/7:35 pm IST

– सौरभ तिवारी

#Batangad : नेहरू-गांधी परिवार के सियासी वंशावली की दसवीं सदस्य की भी चुनावी राजनीति में इंट्री हो गई है। मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के बाद अब प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी संसद में अपनी सीट सुरक्षित कराने के लिए वायनाड सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है। खास बात ये है कि प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी के बाद नेहरू-गांधी परिवार की दूसरी ऐसी सदस्य होंगी जो दक्षिण से अपने चुनावी राजनीतिक करियर की शुरुआत करने जा रही हैं। उनकी मां सोनिया गांधी ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत जिन दो सीटों से की थी उनमें से एक दक्षिण (कर्नाटक) की वेल्लारी सीट थी।

यूं तो 52 वर्षीय प्रियंका गांधी वाड्रा पिछले 35 सालों से अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सकिय हैं। लेकिन राजनीतिक रंगमंच में अब तक उनकी भूमिका स्टेज में ना होकर पर्दे के पीछे की थी। लेकिन अब वे पॉलिटिकल थियेटर में स्टेज पर अपनी प्रत्यक्ष भूमिका निभाने जा रही हैं। प्रियंका गांधी के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने का ये मुकाम कितना अहम है, इसकी अभिव्यक्ति उन्होंने वायनाड के वोटरों से अपील करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर की है। प्रियंका ने लिखा,” 1989 में मैंने 17 साल की उम्र में पहली बार अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार किया था। इस बात को 35 साल हो गए हैं। इस दौरान मैंने अपनी मां, भाई और अपने कई सहकर्मियों के लिए अलग-अलग चुनावों में प्रचार किया, लेकिन ये पहली बार है जब अपना चुनाव प्रचार कर रही हूं।”

पिता राजीव गांधी के असमय गुजरने के बाद 1990 के दशक के आखिरी वर्षों से ही वो अपनी मां सोनिया गांधी के चुनाव अभियानों का जिम्मा संभालती रही हैं। लेकिन तब उन्होंने खुद को संचालक की भूमिका तक ही सीमित रखा था। पहली बार उनकी राजनीति में आधिकारिक एंट्री 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले तब हुई, जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान का प्रभारी बनाया गया। उन्हें उस वक्त कांग्रेस ने अपने उस तुरुप के इक्के के तौर पर प्रचारित किया था जिसका चला जाना अभी बाकी था। प्रियंका की उनकी दादी इंदिरा गांधी के नैन-नक्श से तुलना करते हुए चमत्कारी नतीजों की हवा बांधी गई, लेकिन इस हवा की नतीजों ने हवा निकाल दी। कांग्रेस को तब पूर्वी उत्तर प्रदेश में महज एक ही सीट मिली थी।

#Batangad : इस खराब प्रदर्शन के बावजूद कांग्रेस ने अपने ‘तुरुप के पत्ते’ को उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर आजमाया। साल 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने पूरी तरह से प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुवाई में लड़ा गया। हाथरस, लखीमपुर खीरी जैसे कई मुद्दों को गरमाने के बावजूद कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी इतिहास की सबसे शर्मनाक पराजय हुई। कांग्रेस को पूरे उत्तर प्रदेश में महज 2 सीटें ही नसीब हुईं। तब सोशल मीडिया में प्रियंका के इस खराब प्रदर्शन को ये कह कर ट्रोल किया गया कि, दादी की नाक भी कांग्रेस की नाक नहीं बचा सकी।

लेकिन दो साल बाद ही 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जैसी अकल्पनीय सफलता हासिल की, उसने तमाम सियासी आकलनों और पूर्वानुमानों को ध्वस्त कर दिया। लोकसभा चुनाव के पहले तक जिस कांग्रेस के नाम की मर्सिया पढ़ा जा रहा था, उसे इस चुनाव ने संजीवनी प्रदान कर दी। अब तक पर्दे के पीछे से सियासत के शतरंज की चालें चलने वाली प्रियंका की चुनावी लॉन्चिंग का इससे माकूल मौका भला और क्या हो सकता था। बहुमत से पीछे रह जाने से तेवरों में कमजोर पड़ गई भाजपा को संसद के अंदर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष जिस मुखर और भाजपा के लिए असहज करने वाली आवाज के साथ घेर रहा है, उसमें अब प्रियंका गांधी वाड्रा की आवाज भी शामिल हो सकती है। अगर प्रियंका वायनाड जीत जाती हैं तो शायद भारतीय संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब मां और उसकी दो औलादें संसद सदस्य के रूप में मौजूद होंगी। मां सोनिया राज्यसभा सांसद के तौर पर, तो भाई-बहन राहुल और प्रियंका लोकसभा सांसद के तौर पर संसद में नजर आएंगे।

#Batangad : यूं तो प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनावी राजनीति में प्रवेश की अटकलें काफी दिनों से चल रही थीं। 2019 के जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था तब भी ये चर्चा थी कि वो अपनी मां की पारंपरिक सीट रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। यहां तक कि उन्हें चुनाव में खड़े होने की अपील करते हुए पोस्टर भी लग गए थे। लेकिन उन्हें चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया। दरअसल कांग्रेस की राजनीतिक विरासत में राहुल गांधी का निर्विवादित अधिकार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ही अब तक उनकी बहन प्रियंका को चुनावी राजनीति से दूर रखा गया था। पार्टी में सत्ता के दो केंद्र बनने से रोकने के लिए फिलहाल प्रियंका को सीधी चुनावी राजनीतिक भागीदारी देने से बचा जा रहा था। दोनों भाई-बहनों के बीच अच्छी बॉन्डिंग होने के बावजूद ये बात जब-तब सामने आती रही है कि दोनों के ही अपने-अपने विश्वस्त और पसंदीदा राजनेता रहे हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के दौरान मुख्यमंत्री पद की खींचतान के बीच प्रियंका और राहुल के अपने-अपने खेमे साफ तौर पर नजर आए भी थे।

बहरहाल अब जबकि प्रियंका गांधी ने नामांकन फार्म भरकर चुनावी राजनीति की ओर अपना पहला कदम बढ़ा दिया है तो उनका आगमन सुनिश्चित होने के बाद कांग्रेस और देश की राजनीति में आने वाले बदलावों की तासीर देखना काफी दिलचस्प रहेगा। कांग्रेस लोकसभा में अपने दो सत्ता केंद्रों को कैसे साधती है, ये किसी सियासी कलाबाजी से कम नहीं होगा। भाजपा ने तो अपनी मंशा प्रियंका के नामांकन के बाद अपनी तंज भरी प्रतिक्रिया में जाहिर कर भी दी है। भाजपा प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा, “प्रियंका गांधी को शुभकामनाएं, हालांकि उनके लिए वायनाड से चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा। अगर प्रियंका गांधी गलती से जीत भी गईं तो 10वीं संसद काफी दिलचस्प होने वाली है। लोकसभा में भाई-बहन के बीच ‘ज्यादा नाकारा कौन है’ इस पर प्रतिस्पर्धा होगी। ये समस्या कांग्रेस पार्टी की है, बीजेपी की नहीं।”

पर्दे के पीछे से निकल कर राजनीतिक रंगमंच पर प्रत्यक्ष भूमिका निभाने जा रही प्रियंका गांधी अपने नये रोल से कितना प्रभावित कर पाती हैं, इस रहस्य से पर्दा उठना अभी बाकी है।

– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

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