राजनीतिक दलों को सांसदों के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए : ओम बिरला

राजनीतिक दलों को सांसदों के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए : ओम बिरला

  •  
  • Publish Date - January 21, 2025 / 11:13 PM IST,
    Updated On - January 21, 2025 / 11:13 PM IST

पटना, 21 जनवरी (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद और राज्य विधानसभाओं में व्यवधान के बीच मंगलवार को राजनीतिक दलों से अपने सांसदों के लिए आचार संहिता बनाने का आग्रह किया ताकि उनके संबंधित सदनों की गरिमा बनी रहे।

पटना में आयोजित दो दिवसीय 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में एक पांच सूत्री प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें अपने-अपने विधानमंडलों में ‘व्यवधान मुक्त’ बहस और चर्चा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का सामूहिक संकल्प शामिल था।

बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों ने स्थानीय और दो अतिरिक्त भाषाओं में बहस उपलब्ध कराकर विधायी निकायों को लोगों के करीब लाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग जैसी तकनीकों से लैस किये जाने पर सहमति व्यक्त की है।

पीठासीन अधिकारियों ने राज्य विधानसभाओं की बैठकों की संख्या में गिरावट पर चिंता व्यक्त की और पिछली बैठकों के प्रस्तावों को लागू करने पर सहमति भी जताई।

बिरला ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘पीठासीन अधिकारियों की पिछली बैठक में हमने संकल्प लिया था कि राज्य विधानसभाएं एक कैलेंडर वर्ष में कम से कम 60 बैठकें करेंगी। हम संकल्प को लागू करने के लिए प्रयास करने पर सहमत हुए हैं।’

राजनीतिक दलों द्वारा अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए आंतरिक आचार संहिता की जोरदार वकालत करते हुए बिरला ने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से विधायी निकायों में व्यवधान कम हो सकते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि कुछ दलों के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए अलिखित आचार संहिता है और उनके सदस्य सदन में आसन के करीब आने और कार्यवाही को बाधित करने से बचते हैं।

बिरला ने मीडिया से सदन की कार्यवाही को बाधित करने के लिए सांसदों का महिमामंडन न करने और संसद तथा राज्य विधानसभाओं के सत्रों के दौरान अनियंत्रित आचरण के खिलाफ अधिक बार लिखने का भी आग्रह किया।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘कार्यवाही को बाधित करने वालों को नायक न बनाएं।’

दो दिवसीय इस सम्मेलन में 41 पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया, जिन्होंने ‘संविधान की 75वीं वर्षगांठ: संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में संसद और राज्य विधान निकायों का योगदान’ पर अपने विचार व्यक्त किए।

इस सम्मेलन के दौरान सतीश महाना (उत्तर प्रदेश), राहुल नार्वेकर (महाराष्ट्र), एम अप्पावु (तमिलनाडु) और अब्दुल रहीम राथर (जम्मू-कश्मीर) सहित विभिन्न राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों ने विचार-विमर्श में भाग लिया।

महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष राम शिंदे और उपसभापति नीलम गोरहे भी विचार-विमर्श में शामिल हुए।

बिरला ने समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘सभी राजनीतिक दलों को विधायी निकायों की गरिमा को बनाए रखने में सहयोग करना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब राजनीतिक दलों के पास अपने सांसदों के लिए आचार संहिता होगी।’

लोकसभा अध्यक्ष की यह टिप्पणी कई विधायी निकायों में बार-बार होने वाले व्यवधानों की पृष्ठभूमि में आई है।

उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों ने प्रौद्योगिकी का उपयोग करके विधायी निकायों के कामकाज में अधिक दक्षता लाने का संकल्प लिया।

बिरला ने कहा कि संसद जल्द ही 1947 से लेकर अब तक की संसदीय बहसों को संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में उपलब्ध कराएगी।

उन्होंने कहा कि सभी राज्य विधानसभाओं को भी 1947 से लेकर अब तक की बहसों को हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए संसदीय सचिवालय से तकनीकी सहायता की पेशकश की।

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संसद ने आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से 10 में संसदीय पत्रों के साथ-साथ अनुवाद की सुविधा देना शुरू कर दिया है।

अपने संबोधन में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने विधायकों को सदन में अपने आचरण पर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

हरिवंश ने कहा, ‘पुराने समय में, भारी बहुमत वाली सरकारें हुआ करती थीं, फिर भी विपक्ष में चुने हुए सदस्य अपने विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने और अपनी असहमति को गरिमापूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने में सक्षम थे। आज व्यवधान की प्रकृति से पता चलता है कि हम सम्मानपूर्वक असहमति जताना भूल गए हैं।’

समापन सत्र में हरिवंश, बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव और बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह सहित अन्य लोग शामिल हुए।

बिरला ने बिहार विधानमंडल विस्तार भवन में राष्ट्रीय ई-विधान एप्लीकेशन सेवा केंद्र का भी उद्घाटन किया।

भाषा

अनवर, रवि कांत रवि कांत