रायपुर। बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के दूरस्थ स्थित पंचायतों मे से एक चंगोरी-पेसर से विधानसभा चुनाव में स्टाफ के साथ पेट्रोलिंग करते हुए लौटते दौरान मेन रोड से लगे हुए एक खेत में अपने फ़सल क़ो एक किसान का परिवार स्वयं से ही तल्लीन होकर काटने मे व्यस्त था। उनको देखकर सहसा ही मैंने अपनी गाड़ी ड्राइवर से रुकवा कर खेत में उनके पास जाकर खेतिहर किसान (महिला-पुरुष व दो बालिग़ लड़का लड़की ) से पूछने का दुस्साहस कर लिया कि ‘तुमन वोट देहे गए रहे के नही’?
छत्तीसगढ़ी बोली में मेरी बात क़ो सुनके व पुलिस वर्दी के प्रश्न का उत्तर देने की बंदिशों क़ो सोचते हुए ना चाहते हुए भी पहले तो पुरुष ने अनसुना कर दिया, बाद में फिर से प्रश्न दोहराने पर जवाब में उसकी महिला ने कहा, नहीं अभी नहीं गे हन साहब’,मैंने फिर से दूसरा प्रश्न किया, ‘तीन बजथे, देरी हो जाहि, जल्दी जावा ना’, उनमे से आदमी ने झल्लाकर कहा,’ लेना का होही, नई दे पाबो ता। ‘मैंने कहा, ‘ आज चुनाव के तिहार हे, आज मउका हे, अपन मन के सरकार बनाय के, तुमन अपन मउका ला अइसनहे मत ख़राब करा।’
उसने कहाँ, ‘सहाब आज हमन परिवार के सब्बे झन मिले हन,कल नई मिलन, लइका मन बाकी दीन अपन काम बूता मा चल देथे,…आज हावन त काम ला खत्म करन दे। मेरे बार बार वोट देने के लिए बोलने पर उसने कहा:- लेना देखबो, काम बूता हो जाहि, ता वोट दे देबो ।
हम स्वीप अभियान चला रहे हैं, कलेक्टर सर, एस एस पी सर और पूरा प्रशासन तंत्र मतदान क़ो शत प्रतिशत कराने के लिए तरह तरह के अभिनव- प्रयास कर रहे हैं, और यहाँ गांव के किसान अपने वोट के महत्व क़ो समझ ही नहीं पा रहे हैं। उनके लिए उनकी खेती ही सर्वोपरि है और क्यों ना हो… यह जानते हुए कि वोट देना उनके लिए कितना जरूरी है, लोकतंत्र में अपनी सहभागिता के महत्व क़ो ग्रामीण किसान परिवार समझना ही नहीं चाह रहा था। उनकी अपनी प्राथमिकता है।
आधे घंटे बीत जाने पर मेरी सहनशीलता जवाब दे रही थी, चुनाव का समय भी बीत रहा था, मुझे अपनी टीम क़ो लेकर और भी दूसरे जगह जाना था, मुझसे रहा नही गया, आसपास के अन्य राहगीरों की मदद से उस परिवार क़ो समझा बुझा कर गांव के पास स्थित उनके मतदान बूथ तक़ खेत से सीधे ही किसी तरह भेजा, व उन लोगों ने अपना अमूल्य वोट दे ही दे, यह सुनिश्चित भी किया …
मैं ह तो अपन सहभागिता के सँग सँग अपन जिम्मेदारी ला निभा देव, तुमन निभाय हव? मन संतृप्त हुआ. आभार…