MP Assembly Election 2023: दिग्गी के खिलाफ नाराजगी को जब किन्नर समुदाय के उम्मीदवार ने भुनाया.. शबनम मौसी ने जीता था चुनाव, क्या काजल मौसी दोहराएंगी इतिहास?

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  • Publish Date - November 1, 2023 / 04:29 PM IST,
    Updated On - November 1, 2023 / 04:29 PM IST

शहडोल: इसी महीने पांच राज्यों में विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे। नामांकन का दौर भी ख़त्म हो चुका है और ऐसे में कौन किस सीट से चुनावी ताल ठोंकेगा यह भी लगभग तय हो चुका है। सभी राज्यों में इस चुनाव को लेकर पूरे देश की नजर है। बड़े दल के शीर्ष नेताओं से लेकर क्षेत्रीय दलों के मुखिया भी अपनी पार्टी और उम्मीदवार के प्रचार के लिए चुनावी राज्यों का दौरा का रहे है। बात मध्यप्रदेश की करें तो यहाँ लड़ाई दूसरे सूबो से कही ज्यादा रोचक है। यहाँ शहडोल जिले के एक सीट पर एक थर्ड जेंडर (किन्नर) काजल मौसी किस्मत आजमा रही है। काजल मौसी ने शहडोल जिले के जैतपुर विधानसभा से अपना पर्चा दाखिल किया है।

क्या दोहरा पायेंगी इतिहास?

बात करें अगर एमपी के चुनावी इतिहास की तो यह पहला मौक़ा नहीं है जब यहाँ से किसी किन्नर समुदाय के उम्मीदवार ने चुनाव लड़ने का मन बनाया हो। 23 साल पहले भी सोहागपुर सीट से एक थर्ड जेंडर प्रत्याशी ने चुनाव लड़ा था और वह विजयी भी रही थी। तब प्रत्याशी थी शबनम मौसी। शबनम मौसी ने ना सिर्फ चुनाव जीता था बल्कि वह विधायक भी बनी।

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दरअसल सन 2000 में सोहागपुर विधायक केपी बाद यह सीट खाली हो गई थी। यहाँ उपचुनाव कराया गया था। तब मध्यप्रदेश के कांग्रेस सरकार में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। सीएम दिग्विजय को लेकर मतदाताओं में काफी नाराजगी थी। ऐसे में शबनम मौसी ने उस नाराजगी को भुनाया और भाजपा-कांग्रेस दोनों के अधिकृत उम्मीदवारों को पटखनी देकर कामयाबी हासिल की थी।

फिर मिली हार

इस जीत के बाद उत्साहित शबनम मौसी ने 2003 में फिर से इस सीट से ताल ठोंकी और चुनावी मैदान में उतरी। हालाँकि इस चुनाव में उनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह पहले से सीधे 11वें स्थान पर जा पहुंची। वही इस चुनाव के बाद इस सीट का समीकरण पूरी तरह बदल गया। यहाँ से कभी चुनाव ना हारने वाली कांग्रेस के हाथ से यह सीट जाता रहा और पिछले सभी चुनाव में भाजपा का उम्मीदवार जीतता रहा। फिलहाल यहाँ से भाजपा के विजयपाल सिंह विधायक है।

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गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2018 में, यानी पिछले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश सूबे में 114 सीटों पर जीतकर कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि 230-सदस्यीय विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खाते में 109 सीटें ही आ पाई थीं। बाद में कांग्रेस ने 121 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंपा था और कमलनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री शपथ ली थी। लेकिन फिर डेढ़ साल बाद ही राज्य में नया राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हो गया, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ BJP में शामिल हो गए। इससे बहुमत BJP के पास पहुंच गया और शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर सूबे के मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद, राज्य में 28 सीटों पर उपचुनाव भी करवाए गए और BJP ने उनमें से 19 सीटें जीतकर मैजिक नंबर के पार पहुंचने का कारनामा कर दिखाया. फिलहाल शिवराज सिंह 18 साल की अपनी सरकार की एन्टी-इन्कम्बेन्सी की लहर के बावजूद अगला कार्यकाल हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं, और पार्टी, यानी BJP ने अपने सारे दिग्गजों को मैदान में उतार दिया है। दूसरी तरफ, कांग्रेस भी एन्टी-इन्कम्बेन्सी की ही लहर पर सवार होकर सत्ता में वापसी का सपना संजोए बैठी है। कांग्रेस पार्टी का मानना है कि इस बार उसकी संभावनाएं पहले से बेहतर हैं।

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