#NindakNiyre: कांग्रेस अधिवेशन के 7 पैगाम, हिंदू वोटर बिखराओ, विपक्षियों साथ आओ, 3 दिन का पूरा सार

#NindakNiyre: कांग्रेस अधिवेशन के 7 पैगाम, हिंदू वोटर बिखराओ, विपक्षियों साथ आओ! Congress Adhiveshan Result on 7 Point

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  • Publish Date - February 28, 2023 / 01:05 PM IST,
    Updated On - February 28, 2023 / 01:05 PM IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

Congress Adhiveshan Result on 7 Point कांग्रेस ने अपने अधिवेशन के जरिए देशभर में कई सारे पैगाम देने की कोशिश की है। 3 दिन तक कांग्रेस ने हर रोज स्टेप बाइ स्टेप अपनी रणनीति को धुना, बुना और अब अपनाने तैयार है। भव्य और विशाल आयोजन के जरिए पार्टी ने देशभर की सियासत में कई पैगाम इकट्ठा दिए हैं। यह पैगाम लोगों तक कितने पहुंचे हैं और कितने पहुंचाए गए हैं, यह वक्त तय करेगा, फिलहाल आप बने रहिए मेरे यानि बरुण सखाजी के साथ।

पहला पैगाम, गांधी परिवार मुक्त नहीं पर मुक्त जैसी कांग्रेस

Congress Adhiveshan Result on 7 Point पहले दिन की स्टेरिंग कमेटी की बैठक में गांधी परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ। पार्टी ने यहां उन आशंकाओं को ध्वस्त करने की कोशिश की है, जो खरगे को कठपुतली अध्यक्ष के रूप में पेश कर रही थी। इस दिशा मे पार्टी ने केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्यों का चयन खरगे के हाथ में दे दिया। इन दो गतिविधियों से यह संदेश दिया गया कि पार्टी पर जो जी-23 के लोगों ने आरोप लगाए थे या जो भाजपा वंशवाद का पैंट करने की कोशिश करती है वह धोया जा सके। उदयपुर संकल्प शिविर में इसकी शुरुआती छाया दिखी थी, जो मुकम्मल हुई रायपुर के इस अधिवेशन में।

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दूसरा पैगाम, विपक्षी दलों को दिखाई ताकत

देश में जो भाजपा या मोदी के साथ नहीं हैं, वे कांग्रेस के साथ होना चाहिए। इस रणनीति को साकार करने के लिए कांग्रेस 3 दिनों तक रायपुर में अधिवेशन केंद्रित रखा। यहां भाजपा या मोदी टारगेट पर सिर्फ भाषणों में ही थे, लेकिन वास्तव में लक्ष्य विपक्षियों को एक मंच पर लाने की कवायद थी। कांग्रेस चाहती है अगर विपक्षियों ने कांग्रेस की लीडरशिप स्वीकार कर ली तो मोदी को हराया जा सकता है या कम से कम अपनी साख को तो उठाया ही जा सकता है।

तीसरा पैगाम, धन, जन, मन सारे बल कांग्रेस के पास

बीते कुछ वर्षों में हमने देखा है, कांग्रेस के पास जनबल के साथ ही धनबल भी कम हो रहा है और सबसे ज्यादा मन बल भी घट रहा है। 2014 से लगातार पार्टी के चंदे में कमी आ रही है और चुनावी बॉन्ड के जरिए सरकार ने भी कांग्रेस की कमर तोड़ रखी है। पार्टी ने बड़ी संख्या में अपने खास सिपहसालार भूपेश बघेल की मेजबानी में लोगों को जुटाया। कार्यक्रम की भव्यता को बनाए रखा। देशभर में इसकी चर्चा खड़ी करने की कोशिश की। मकसद साफ था। पार्टी चाहती है, देश और खासकर विपक्षी दल जानें कांग्रेस में मनोबल की कमी नहीं है और उसका आर्थिक सिस्टम भी ध्वस्त नहीं हुआ।

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चौथा पैगाम, कार्यकर्ताओं में संदेश टाइगर अभी जिंदा है

अधिवेशन में सबसे खास पैगाम यही है कि पार्टी के मायूस कार्यकर्ता चुनावों को लेकर जोश बरकरार रखें। कांग्रेस 2024 में अच्छी फाइट देने जा रही है। उससे पहले 2023 के सभी 9 चुनावी राज्यों में धमाकेदार चुनाव लड़ने जा रही है।

पांचवां पैगाम, हिंदू वोट को बांटकर तोड़ना

कांग्रेस ने पहले हिंदुत्व की काट के लिए सॉफ्ट और हार्ड में बांटने की कोशिश की। फिर लोकतांत्रिक ढांचों पर हमले का राग अलापा। फिर तमाम जांच एजेंसियों की कार्रवाई के जरिए स्वयं पीड़ित बनने की कोशिश की। फिर मीडिया पर भी खिसियाई। ईवीएम के जरिए भी हार को डायल्यूट करने की कोशिश की। अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, किसान बिल, चीन-भारत, महंगाई, राफाल, पुलवामा, उरी स्ट्राइक के जरिए भी कांग्रेस ने भाजपा को घेरने की कोशिश की। लेकिन कोई भी युक्ति भाजपा को रोक नहीं पाई। अंत में एक युक्ति आंशिक सफल दिखी। छत्तीसगढ़ में किसान कर्जमाफी और हिमाचल में ओल्ड पेंशन। मगर कांग्रेस जानती है, आज नहीं तो कल भाजपा इसका काट ले आएगी। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी हिंदू वोट को बिखराना होगा। आपने देखा होगा पार्टी ने अपने संगठन, चुनावी टिकटों के फॉर्मूले में ऐलान किया है कि वह आदिवासी, ओबीसी, महिला, दलित, अल्पसंख्यक को 50 फीसद प्रतिनिधित्व देगी। इसमें कांग्रेस ने सामान्य वर्ग का नाम भी नहीं लिया। मतलब साफ है, सामान्य वर्ग को आइसोलेट करते हुए हिंदुओं के तमाम इन फिरकों को बिखराया जा सकता है। इस तथ्य को मजबूत करते हैं खरगे के मनुवादी शिक्षा प्रणाली वाले बयान और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मौत के शिकार हुए कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ता। पार्टी ने श्रद्धांजलि तो सबको दी, लेकिन नाम लिया पासी जाति के बच्चू का और पिछड़ी जाति के अनोखे लाल का। जबकि इसमें एक कार्यकर्ता शुक्ला भी था।

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छठवां पैगाम, 2009 के वोट परसेंट तक पहुंचना

2019 के नतीजे कहते हैं, कांग्रेस को साढ़े 19 फीसद वोट मिले हैं, जो सरकार को मिले वोट से आधे हैं। यानि देश में 37 फीसद वोट के साथ भाजपा और उसके सहयोगी सरकार चला रहे हैं। जबकि देश में 63 फीसद वोट भाजपा या मोदी के पास नहीं है। चुनावी भाषा में कहें तो भाजपा के विरोध में है। कांग्रेस चाहती है, वह 2024 में किसी भी तरह से अपना वोट फीसद 25 तक लेकर जाए और बाकी एनसीपी, डीएमके, टीएमसी, बीआरएस जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप के साथ मिलकर वह 2009 की तरह 28 फीसद वाली सरकार बना सकती है।

सातवां पैगाम, राज्यों को राज्य संभालें

तीन दिन के अपने अधिवेशन में कांग्रेस ने एक बार भी एमपी-सीजी, राजस्थान, कर्नाटक जैसे बड़े चुनाव राज्यों का नाम नहीं लिया। पार्टी का संदेश साफ है कि राज्यों को राज्य के नेता संभालें या डुबाएं, केंद्रीय नेतृत्व इसकी जिम्मेदारी लेने के मूड में नहीं है। जिस छत्तीसगढ़ में अधिवेशन हुआ उसे लेकर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं दिखी। मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे कांग्रेस के संभावनाओं वाले राज्य में भी पार्टी ने कोई चर्चा अलग से नहीं की। मतलब राजस्थान का गहलोत जानें, छत्तीसगढ़ का बघेल और एमपी का कमलनाथ। कर्नाटक जैसे तीसरी ताकत वाले राज्य में कांग्रेस बंगाल फॉर्मूला लगाकर उसे क्षेत्रीय दल को 2024 के लिए अपने साथ तैयार करना चाहेगी। परोक्ष रूप से देखा जाए तो यह पैगाम भूपेश बघेल की बांछे खिलाने वाला है, जिन्होंने कांग्रेस को संकट के इस दौर में भारी-भरकम कार्यक्रम की मेजबानी करके 2023 में फिर से दोहराने की संभावनाएं दी हैं। पार्टी में छत्तीसगढ़ की कुछ योजनाओं को देशभर में अपनाने पर भी बात हुई है।

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निष्कर्ष

निष्कर्ष यही कहना चाहिए कि पार्टी का यह अधिवेशन न तो मोदी सरकार पर हमले की रणनीति था न अपने आपको फिर से खड़ा करने की सियासत का। यह सिर्फ और सिर्फ देशभर में विपक्षियों को कांग्रेस की ताकत और संभावनाएं दिखाने का था। यानि यह जान लो, अगर कांग्रेस के साथ 2024 में नहीं आओगे तो उसके बाद अपने प्रदेश भी नहीं बचा पाओगे, क्योंकि कांग्रेस जिता नहीं सकती, लेकिन हरा सकती है। अधिवेशन को शॉर्ट और फिल्मी भाषा में कहें तो टाइगर अभी जिंदा है।

 

 

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