बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
Congress Adhiveshan of Raipur वैसे तो राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस का रायपुर में होने जा रहा अधिवेशन 85वां नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक विघटित होते, बनते, फिर संगठित होते संगठन का यह 85वां अधिवेशन ही है। कांग्रेस आजादी के पूर्व देश की राजनीतिक आवाज थी, आजादी के बाद यह राजनीतिक दल बन गई। आजादी के बाद बतौर कांग्रेस में भी कई सारे बदलाव आए, लेकिन गांधी-नेहरू परिवार के प्रभाव वाले गुट को ही असली कांग्रेस माना जाता रहा।
Congress Adhiveshan of Raipur इस लिहाज से देखें तो रायपुर का यह 31वां अधिवेशन कहा जाना चाहिए, क्योंकि इससे पहले 54 अधिवेशन आजादी के पूर्व में हुए थे। जब कांग्रेस एक सामाजिक संगठन थी, न कि राजनीतिक दल। आलोचकों के इस तर्क में दम तो है, लेकिन कांग्रेस इसे खारिज करती आई है। करना भी चाहिए, क्योंकि पार्टी के रूप में हो या सामाजिक संगठन के रूप में अंततः लोग तो वही थे। जैसे कि भाजपा दावा करती है वह जनसंघ से चली आ रही है। हालांकि भाजपा जनसंघ के स्थापना दिवस को अपना स्थापना दिवस नहीं बताती। इसलिए वह इस मामले में अलग है। वह अपना स्थापना दिवस 6 अप्रैल 1980 को ही मानती है, जब वह आज की भाजपा बनी थी।
खैर, यह मसला कांग्रेस और उससे जुड़े लोगों पर छोड़ देते हैं। कांग्रेस की वेबसाइट खुद इस विभाजन को मानते हुए ही सूचनाएं देती है। इसमें चार सेक्शन में यह अधिवेशन और विशेष सत्रों की जानकारी है। पहला सेक्शन स्थापना काल, दूसरा स्वतंत्रता पूर्व काल, तीसरा उदारवाद पूर्व और चौथा उदारवाद के बाद का। इसके मुताबिक स्थापना काल 1885 से 1900 तक 16 वर्षों में हर वर्ष अधिवेशन हुए। फिर 1900 से 1947 के बीच 47 वर्षों में 38 अधिवेशन हुए। इसके बाद 1947 से 1990 के बीच 24 अधिवेशन हुए और 1990 के बाद से शुरू हुए उदारवाद के बाद के कालखंड में सिर्फ 6 ही अधिवेशन हुए हैं। रायपुर में यह 7वां होने जा रहा है।