बेलतरा: कांग्रेस के लिए इस बार बिलासपुर में अपनी बुनियाद मजबूत कर पाना काफी मुश्किल नजर आ रहा है। इसकी पहली वजह है भाजपा की तरफ से बड़े और नामी चेहरों को चुनावी मैदान में उतारना, दूसरा नाराज बागियों की बगावत और तीसरी सबसे बड़ी वजह है कमजोर प्रत्याशियों के बूते चुनावी वैतरणी पार लगाने की कोशिश।
दरअसल हम बात कर रहे हैं बेलतरा विधानसभा क्षेत्र की। बेलतरा विधानसभा कांग्रेस के लिए हमेशा से ही दूर की कौड़ी रही है, यानी इस सीट पर कांग्रेस कभी भी जीत का पताका नहीं फहरा पाई और यही वजह है कि यह सीट अब भाजपा के लिए अभेद्य किला बन चुका है। हालाँकि इस बार कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव की बात कही थी, बेलतरा में पंजे को कामयाबी दिलाने का दावा किया गया था, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस ने यहां से बिलासपुर के कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय केशरवानी को अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने इस तरह से किसी दमदार चेहरे को प्रत्याशी बनाने के बजाये संगठन के नेता को तरजीह दी।
वहीं अब यही बात कांग्रेस के दूसरे नेताओं को भी नहीं पच रही है कि आखिर कांग्रेस ने बेलतरा जैसे हाई प्रोफ़ाइल सीट पर विजय केशरवानी जैसे दावेदार को मौक़ा देकर किस तरह से अपनी रणनीति में बदलाव किया है? आखिर 100 से ज्यादा दावेदारों के बीच किस तरह से विजय केशरवानी को जीत के लायक समझा गया और उन्होंने बड़े लीडरों को सुपरसीड करते हुए बिना क्षेत्र के किसी समीकरण को समझे हुए टिकट दे दिया गया।
संगठन में बिखराव और गुटबाजी
विजय केशरवानी आज भले ही कांग्रेस के तरफ से बेलतरा के लिए सबसे बड़े और मजबूत दावेदार बनकर उभरे हो लेकिन संगठनकर्ता के तौर पर उनका कार्यकाल काफी नीरस रहा है। उनके जिलाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस के भीतर जमकर गुटबाजी हावी रही। बिलासपुर जो हमेशा से ही कांग्रेस के लिए संगठनात्मक तौर पर मजबूत माना जाता रहा है वहां भी पार्टी के बड़े नेताओं के बीच खुलेआम मतभेद सामने आते रहे। पिछले चुनाव के बाद कई ऐसे मौके आये जब बड़े नेताओं की अगुवानी के दौरान संगठन के नेता ही आपसे में भिड़ते रहे। बात अगर नेताओं की अनुशासन की करे तो भी विजय केशरवानी का लगाम नजर नहीं आया। कई मौकों पर पुलिस और कांग्रेस नेताओं के बीच भी बहस की ख़बरें सामने आई। जाहिर है इस तरह की स्थितियों के लिए जिला प्रमुख का अपने नेताओं पर पकड़ नहीं होने को ही वजह माना जाता रहा।
भाजपा समेत दूसरी राजनीतिक दल आरोप लगाते रहे है कि विजय केशरवानी बिलासपुर के रहने वाले है ऐसे में उन्हें बेलतरा जैसे ग्रामीण बेल्ट से उम्मीदवार नहीं बनाया जाना था। आरोप यह भी लगते रहे है कि विजय केशवरवानी को बेलतरा क्षेत्र की समस्यायों की समझ नहीं है। यही वजह है कि मौजूदा प्रचार प्रसार में भी जनता के भीतर कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर किसी तरह का उत्साह नजर नहीं आ रहा है। सूत्रों की मानें तो क्षेत्र के मतदाताओं के बीच स्थानीय उम्मीदवार को लेकर काफी गंभीरता देखी गई है। बेलतरा से इस बार सभी को उम्मीद थी की कांग्रेस इस सीट को जीतने के लिए किसी स्थानीय दावेदार को बनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका बल्कि विजय केशरवानी जैसे कमजोर उम्मीदवार को बेलतरा की कमान सौंप कर दुसरे दलों के लिए रास्ता और भी आसान कर दिया गया।
विजय केशरवानी टिकट पक्का होने के बाद से लगातार क्षेत्र जनसम्पर्क कर मतदाताओं के बीच पहुँचने की कोशिश में जुटे हुए लेकिन उन्हें कामयाबी मिलती नजर नहीं आ रही है। जमीनी रिपोर्ट के मुताबिक़ बेलतरा क्षेत्र में विजय केशरवानी के प्रति मतदाताओं में ना ही उत्साह है और ना ही रुझान। इन सबके बीच उनके सभाओं में भीड़ नहीं उमड़ना भी क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में अब देखना होगा कि बेलतरा जैसी मुश्किल सीट पर कांग्रेस कैसे अपनी चुनावी नैया पर करा पाने में कामयाबी हासिल करती है या फिर हमेशा की तरह कांग्रेस अपना पुराना प्रदर्शन ही दोहराती है?
विजय केशरवानी का चुनावी कुप्रबंधन उस वक़्त उजागर हुआ जब उन्हें चुनाव आयोग की तरफ से पेड न्यूज मामले में नोटिस थमाया गया। दरअसल बिलासपुर का निर्वाचन कार्यालय इस विधानसभा चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर गंभीर है। ऐसे में निर्वाचन कार्यालय ने बेलतरा के कांग्रेस प्रत्याशी विजय केशरवानी के पक्ष में प्रकाशित खबर को लेकर नोटिस जारी किया है। कांग्रेस उम्मीदवार की एक खबर को विज्ञापन मानते हुए प्रत्याशी के खर्च में शामिल करने को कहा गया है। संभवतः बिलासपुर जिले में किसी उम्मीदवार को मिला यह पहला नोटिस है। इस में समझा जा सकता है कि विजय केशरवानी और उनकी प्रचार टीम आदर्श आचार संहिता के मापदंडो को लेकर भी किस तरह उदासीन बनी हुई हुई।
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